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Archive for the ‘रोहित अग्रवाल’ Category

बहुत ज़माने से “शमा और परवाने” की मोहब्बत का किस्सा मैंने सुना था…मगर हर किसी ने बस परवाने के दीवानेपन को लिखा है और हमने भी बस उसके मोहब्बत में  फ़ना हो जाने के जज्बे को जाना ..पर एक दिन यूँ ही एक महफिल में  शमा से जो कुछ गुफ्तगू हुई तो शमा के मर्म को मैंने समझा…यदि आप तक पहुंचा दूं तो समझूगा की अब कलम इतराना सीख गयी है…

मोहब्बत तो शमा को भी थी परवाने से
इसलिए तो ज़माने से जल रही थी
बस कहती न थी, मगर उस रोज़ जो उसने देखा
कि वो परवाना सारी रात जाग उसे ताकता रहा
तो उससे रहा न गया,कर दिया इज़हार-ए-मोहब्बत
कह दी दिल कि बात,और परवाने ने
जैसे ही उसे छूने को बढाया अपना हाथ
वो जलकर राख हो गया…वो जलकर राख हो गया

इंतज़ार तो किनारों को भी था लहरों का
मगर खुद को रोके हुए थे
पर उस रोज़ जो उसने देखा कि
चली आती है कोई लहर छितिज पार से
बस एक उसके चुम्बन कि ख्वाहिश लिए
तो उसने सोचा ज़रा बढ़कर थाम लूं इसे
मगर लहर के टकराते ही, लहर का
वजूद खाख हो गया…वजूद खाख हो गया

हमारी मोहब्बत को इसकी पाखियत को
जो बनाये हुए है,वो वही है
हमारे दरमियान जो थोडी दूरी है…
दिल में है बेकरारी तभी तक,
इश्क में है खुमारी तभी तक
जब तक चंद ख्वाहिशें अधूरी है…
हर मोहब्बत के आगाज़ का
अंजाम नहीं ज़रूरी है…
अंजाम नहीं ज़रूरी है…

-रोहित अग्रवाल-

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मिडसेम की मगाई ने ऐसा गिव अप कराया
हमने आज परीक्षा छोड़ कर हिंदी दिवस मनाया
प्रश्न-पत्र जैसे पर्येवेक्षक ने हमारी मेज पे धरा
हमने मोर्चा संभाला, ध्यान से एक एक प्रश्न पढ़ा

रात्रि जागरण कर जितना मगा था, सब याद किया
और इस प्रकार आधे घंटे का समय बर्बाद किया
फिर भी जब हमें दाल गलती नहीं दिखी
तो ख्याल आया की उम्मीद पे तो है दुनिया टिकी
इधर उधर से देख कर कुछ लगाने लगे जुगाड़
की मास्टर साब ने छीनकर पर्चा दिया फाड़

अब हम निराश हताश से पहुचे काफ़ी शैक
वहां चल रहा था भारत-लंका का मैच
कलम निकली,और भरने लगे चाय की चुस्की
कविता लिखते लिखते चेहरे पे छाने लगी मुस्की
पल भर में परीक्षा की सब चिंता छोड़ मन
करने लगा नव विचारों से कविता का स्रजन
हमें समझ गए की हिंदी में ही आनंद रस है
फील गुड होने लगा की आज आज हिंदी दिवस है


तभी पास खड़े एक सज्जन ने फ़रमाया
“भाई हिंदी को राष्ट्र भाषा क्यों बनाया?
अंग्रेजी को यदि हम राष्ट्र भाषा बनाते
प्रगतिशील और globalised कहलाते..??”
हमने अपना  दिमाग दौडाया,बात इज्ज़त की थी
अकेले ही लड़कर हिंदी की डूबती लुटिया को बचाया
हमने उन्हें समझाया की अंग्रेजी की बड़ी अजीब माया
इसे सुनकर पढ़कर मैं भी हूँ  बहुत बार चकराया

प्रिय को कहते हैं sweeetheart, बकवास को fart
अरे इस भाषा के लोग तो शब्दों के आभाव में जीते हैं
कभी हिरन तो कभी प्रेयसी को dear कहते हैं
भालू है बियर, उसे ही मदिरा समझ कर पीते हैं
इसी प्रकार “तुम्हारा तुम्हारी” का भेद मिटाकर
अंग्रेजों ने बस एक “your” शब्द बनाया है
अंतर ऐसा भूले की विश्व में सबसे
पहले समलैंगिकता को अपनाया है….

इसीलिए कहता हूँ हिंदी बचाओ ये वैदिक संस्कृति का आधार है
ये ज्ञान की प्रथम बौछार है….सभ्यता का प्रथम उपहार है
ये देवों का वरदान है,गीता का ज्ञान है,विचारों की खान है
प्रेम का परिधान है,सब भाषाओँ में महान है…
ये अत्त्मा है भारत माँ की..हिंदी से हिन्दुस्तान है…

-रोहित अग्रवाल-

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